रिश्तों के बीज बोए जाते हैं,
बीज से पौधा,
पौधे से पेड़,
और फिर वृक्ष बन जाते हैं रिश्ते.
रिश्ते कई बार
स्वयं अंकुरित होते हैं,
कई बार
बिना किसी प्रयास के
रिश्ते जन्म लेते हैं,
फूल बन महकते हैं,
तो कभी काँटे बन चुभते भी हैं रिश्ते.
पौधों से वृक्ष बनने की प्रक्रिया में
रिश्ते भिन्न प्रकारों के
उतार-चढ़ाव का सामना करते हैं.
रिश्ते निभाने से चलते हैं,
जीवित रहते हैं,
फिर चाहे वे मानवीय प्रयासों से पैदा हुए हों
या बिना किसी प्रयासों के,
आशय से परे.
बीज पर काफ़ी कुछ निर्भर करता है
रिश्तों का रूप-स्वरूप-प्रारूप,
उनके पोषण पर भी,
कई रिश्ते कुपोषण का शिकार हो जाते हैं.
रिश्तों के पेड़ अपनी जड़ व शाखाओं से
विकसित व पल्लवित होते हैं.
पेड़ से वृक्ष बने रिश्ते
संरक्षण व सुरक्षा की छतरी लगाकर
निभाए जाते हैं.
रिश्ते कई बार बिना किसी आशय से
बड़े हो जाते हैं,
चलते हैं, दौड़ते हैं.
रुकते तो हम हैं.
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