रिश्ते 30

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गाँठ या यों कहें ग्रंथि

रिश्तों के जीवन में

बाधा भी बनती हैं

और स्वावलोकन का कारण भी,

बेहतर इंसान बनने की ओर

प्रेरित भी करती हैं,

और अहंकार में लिप्त रहने की

ओर खींचती भी हैं।

गाँठे हमेशा अपने रूप को

बदलती हैं,

अनुभव व समय के साथ,

सकारात्मक सोच

व रिश्तों की प्रगाढ़तावश।

परंतु यदि

अपने दम्भ में ग्रसित मानसिकता

व्यक्ति पर हावी होती जाती है

तो यही ग्रंथि

और कठोर हो जाती है,

और शरीर के राख होने तक

उसकी कठोरता जस की तस रहती है।

गाँठ को सरल करने

व उसके स्वरूप को कठोरता से

कोमलता के रास्ते होते हुए

सहज भाव से खोलने की प्रक्रिया में

किसी न किसी को झुकना होता है,

रिश्तों को नैसर्गिक

एवं सुचारु रूप से

जीवित रखने की ख़ातिर।

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