समय
आदमी उपयोग से उपभोग पथ पर जा रहा था
और जीवन चंद्रमा पर खोज मन पर छा रहा था
गिरा मुँह के बल चपल बल भूल आँखें मींच बैठा
अब उसे अनुभव दिशा भ्रम ज्ञान कुछ-कुछ आ रहा था
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