रिश्ते पानी की तरह
साफ़ होते हैं
तो नदी बन
समंदर हो जाते हैं.
रिश्ते बर्फ़ की तरह
जम भी जाते हैं
और हिम सागर भाँति
पिघलते भी हैं.
और हिम सागर भाँति
पिघलते भी हैं.
रिश्ते मजबूत होना
अच्छा होता है
परंतु चिन्ता का विषय होता है
रिश्तों का पत्थर हो जाना.
परंतु चिन्ता का विषय होता है
रिश्तों का पत्थर हो जाना.
रिश्तों में लोच ज़रूरी होता है
और लोच के सीमेंट से बने रिश्ते
मजबूत होकर भी पत्थर नहीं होते.
मजबूत होकर भी पत्थर नहीं होते.
रिश्तों को मिट्टी होने से
बचाना भी होता है
और बिखरने से
सम्हालना भी होता है.
और बिखरने से
सम्हालना भी होता है.
रोड़ी और रोड़े मिलकर
रिश्ते में मज़बूती लाते हैं.
रिश्ते हाथ से रेत की तरह
सरक भी जाते हैं
और ईंट की तरह खड़े भी रहते हैं.
और ईंट की तरह खड़े भी रहते हैं.
ईंट का जवाब पत्थर से देने से
रिश्ते टूट जाते हैं.
रिश्ते टूट जाते हैं.
ईंट से बने मकानों को
रिश्ते ही घर बनाते हैं.
ऐसा घर जहां
सुख-दुःख साथ-साथ रहते हैं
और जीवन को आनंदमय बनाते हैं.
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4 thoughts on “रिश्ते 28”
बहुत खूबसूरत सर्!
पानी रे पानी, तेरा रंग कैसा
जिसमें मिला लो लगे उस जैसा….
रिश्ते रे रिश्ते, तेरा रंग कैसा
जिसमें मिला लो लगे उस जैसा….
या यूं कहो,
जिस लेंस से देखो, लगे उस जैसा….
बहुत खूबसूरत सर्! …
पानी रे पानी, तेरा रंग कैसा
जिसमें मिला लो लगे उस जैसा….
रिश्ते रे रिश्ते, तेरा रंग कैसा
जिसमें मिला लो लगे उस जैसा….
या यूं कहो,
जिस लेंस से देखो, लगे उस जैसा….
बहुत खूब
आपने मेरी चाय मे मिठास और खुसबु डाल दी।