इस पुस्तक के अनुवादक के रूप में इस परिचय को लिखते हुए मुझे अत्यंत हर्ष की अनुभूति हो रही है। यह मेरा सौभाग्य है कि परम आदरणीय श्री ठाकुर सिंह पौडयेल जी द्वारा लिखित इस पुस्तक का अनुवाद करने का मुझे यह दिव्य अवसर मिला। यदि मेरी मातृभूमि को छोड़कर कहीं बसने का मौक़ा मिले तो मैं नि:संकोच यह कह सकता हूँ वह देश भूटान होगा। संभवतः यह एक संयोग ही है कि जब मेरा जन्म हुआ, मेरे पिता भूटान में कार्यरत थे, आज से पाँच दशकों से भी पूर्व।
सीमा सड़क संगठन, भारत-भूटान मैत्री की एक बेमिसाल पहचान है; मेरे पिता भारत सरकार के इस संगठन में कार्य करते हुए वहाँ सड़कों व पुलों के निर्माण में जुटे थे। उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की होगी कि उनका पुत्र कभी उस महाविद्यालय (शेरुबत्से कालिज, कांगलुंग, ट्राशीगांग, पूर्वी भूटान) में कार्यरत होगा जिसकी नींव को उनकी मेहनत ने मज़बूती दी हो। या फिर जहां की सड़कों के निर्माण में उनका पसीना बहा हो। जिस प्रकार सड़क व पुल हमें हमारे गंतव्य तक पहुँचने का मार्ग प्रशस्त करते हैं, ठीक उसी प्रकार शिक्षा भी एक सशक्त माध्यम है। मैं सोचता हूँ कि आज के समय में संभवतः शिक्षा सबसे महत्वपूर्ण माध्यम है, जो राष्ट्र के नागरिकों को एक सफल जीवन जीने को प्रेरित करता है व उस ओर प्रयासरत रहने के मार्ग को प्रशस्त करता है।
शिक्षा एक ऐसा पुल है जो किसी भी राष्ट्र के नागरिकों को अंधकार से प्रकाश की ओर व अज्ञान से ज्ञान की दिशा में ले जाता है।
मैंने एक शिक्षक के रूप में भूटान के उसी प्रसिद्ध महाविद्यालय में नौ वर्ष कार्य किया। वहाँ बिताया जीवन का हर पल यादगार है; वे मेरे जीवन के स्वर्णिम वर्ष रहे। यहाँ का नैसर्गिक सौन्दर्य, वातावरण में व्याप्त शान्ति, वायु व विचारों की शुद्धता एवं यहाँ के नागरिकों के जीवन जीने की सरलता व समरसता ने मेरे व्यक्तिगत जीवन में कुछ ऐसी छाप छोड़ी जो शब्दों में व्यक्त नहीं की जा सकती। जीवन को लेकर मेरा नज़रिया बनाने में व अपने विचारों को एक दिशा प्रदान करने में इस महाविद्यालय ने एक अविस्मरणीय भूमिका निभाई।
इसी महाविद्यालय में मेरा परिचय श्री ठाकुर सिंह पौडयेल जी से हुआ; आज से लगभग तीन दशक पूर्व। मुझे विश्वास ही नहीं हुआ कि हाड़-मांस में ऐसे लोग भी होते हैं। सरल, सौम्य, अनुशासित, प्रेरक, समर्पित, और पूर्णतः कर्तव्यपरायण। मनसा वाचा कर्मणा के सटीक प्रतिमूर्ति। यों तो वे उप-प्रधानाचार्य थे परंतु उससे कहीं अधिक वे एक बहुत प्रभावी अध्यापक थे, अंग्रेज़ी साहित्य के। मुझे उनको सुनते रहने का मन करता था, शायद उन्हें मालूम न हो, कई बार सोमवार की सुबह जब वे महाविद्यालय के सभागार में, छात्रों को सम्बोधित करते थे तो चोरी-छिपे मैं भी उनके विचारों को सुनता था, उनका उद्बोधन जीवन जीने के सलीकों से भरा होता था।
जीवन दर्शन व देश को सुदृढ़ बनाने के उनके सुझाए तरीक़ों, विश्व की विभूतियों के जीवन की सीखों से भरपूर हुआ करता था। एक सुंदर व सशक्त राष्ट्र की चेतना हेतु किए जाने वाले प्रयासों व एक आदर्श नागरिक के कर्तव्यों पर उनके विचार बहुत स्पष्ट थे और आज भी हैं। आज जब मैं पीछे मुड़कर देखता हूँ तो पाता हूँ कि वे मेरे जीवन के एक महत्वपूर्ण प्रेरणास्रोत रहे हैं।
पिछले दो दशक हम दोनों के लिए बहुत भिन्न रहे हैं, और चुनौतियों से भरे भी। मैं उस महाविद्यालय से भारत के पूर्वोत्तर में स्थित पूर्वोत्तर-पर्वतीय विश्वविद्यालय चला गया और उनको भूटान के एक शोध संस्थान को स्थापित करने का मौक़ा मिला, जो पारो में स्थित था। यह भी एक संयोग ही है कि उन्होंने अंग्रेजी साहित्य में अपनी उच्च-शिक्षा पूर्वोत्तर-पर्वतीय विश्वविद्यालय में ही ग्रहण की थी।
जब 2008 में भूटान में प्रजातंत्र आया तब उनका भूटान की राजनीति में पदार्पण हुआ। मुझे याद है जब वर्ष 2007 मैं थाईलँड सरकार द्वारा आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में मैं उन्हें बैंकॉक में मिला था तो उन्होंने बताया था कि उनके कई जानने वाले लोग उन्हें राजनीति में आमंत्रित कर रहे हैं।
मुझे विश्वास ही नहीं हुआ; उनके व्यक्तित्व से बहुत अलग है राजनीति, या यों कहें, आज की राजनीति। परंतु इसका एक दूसरा पक्ष भी है कि राजनीति को संभवतः आज उन जैसे आदर्शवादी लोगों की अधिक आवश्यकता है। सो, वर्ष 2008 में भूटान के नवीन इतिहास के पहले आम चुनाव में उनको नागरिकों द्वारा चुना गया। प्रजातान्त्रिक व्यवस्था द्वारा चुनी हुई प्रथम सरकार में श्री पौडयेल ने शिक्षा मंत्री का कार्यभार सम्हाला।
भूटान की शिक्षा प्रणाली के लिए यह एक गर्व का विषय था क्योंकि उनके कर कमलों के द्वारा ही यहाँ शिक्षा के क्षेत्र में नए आयामों व प्रयोगों की शुरुआत होनी थी। उनके द्वारा लिखित पुस्तक माई ग्रीन स्कूल शिक्षा के क्षेत्र में उनका एक सराहनीय व सार्थक प्रयास है। मौलिक रूप से इस पुस्तक को अंग्रेज़ी में लिखा गया है परंतु इस पुस्तक के माध्यम से श्री पौडयेल जी के विचार विश्व की उन्नीस प्रमुख भाषाओं (हिन्दी, उर्दू, और कन्नड़ सहित), में अनूदित होकर प्रकाश फैला रहे हैं। इस पुस्तक के कुछ और अनुवाद भी चल रहे है जो शीघ्र ही प्रकाशित होंगे। माई ग्रीन स्कूल के हिन्दी अनुवाद का शीर्षक है— मेरा विद्यानंदालय।
उनके जीवन से मैंने क्या कुछ सीखा कहना मुश्किल है परंतु यदि मेरे व्यवहार में, मेरी जीवन शैली में, या मेरे विचारों में कहीं कुछ मानवीय मूल्यों के प्रति सम्मान व संवेदना आज जीवित है तो उसमें श्री पौडयेल जी की अहम भूमिका है। उनको देखकर, उनसे मिलकर व उनसे बातचीत करके सकारात्मक सोच में मेरा विश्वास और मजबूत होता है; एक अच्छे भविष्य की परिकल्पना को चार चाँद लग जाते हैं; उनका सरल व्यक्तित्व उनके सम्पर्क में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को प्रभावित करता है और प्रेरणा देता है।
कोई अतिशयोक्ति न होगी यदि मैं कहूँ कि श्री पौडयेल जी को भूटान के गांधी के रूप में देखना चाहिए जो स्वयं एक साधारण जीवन जीते हुए उच्च विचार रखते हैं व उनको अपने दृढ़ निश्चय द्वारा क्रियान्वित करने हेतु प्रतिबद्ध रहते हैं। वे नैतिक व मानवीय मूल्यों की केवल बात ही नहीं करते हैं बल्कि उनका पालन भी करते हैं।
यों तो ग्येल-खाब एक छोटी सी पुस्तक है परंतु इसकी प्रष्ठ भूमि व इसमें समाहित भाव एक आदर्श राष्ट्र के सपने को पूरा करने हेतु प्रशंसनीय कदम है। इस पुस्तक में निहित आशय, रामराज्य की संकल्पना व उसे चरितार्थ करने हेतु नागरिकों द्वारा उठाए जाने वाले उन कदमों में है जो एक राष्ट्र को बेहतर बनाते हैं। यह पुस्तक उस आदर्श राष्ट्र की बात करती है जहां के नागरिक जागरूक हों व अपनी सरकार को चुनने में एक सार्थक भूमिका निभाने में सक्षम हो।
भूटान के विद्यालयों में शिक्षा ले रहे छात्र और सभी नागरिक अपने अधिकारों व कर्तव्यों को जानें व समझें। यों तो यह पुस्तक नागरिक शिक्षा पर केंद्रित है और भूटान के संविधान में दिए हुए यथोचित प्रावधानों को वर्णित करती है, परंतु उससे भी अधिक यह पुस्तक संक्षेप में नागरिकों को उनके कर्तव्यों व दायित्वों की स्पष्ट समझ देती है। देश की राजनीति में युवाओं की भूमिका व उनके अधिकारों के प्रावधानों की विवेचना इस प्रकार की गई है कि एक सामान्य युवा उसे समझ सकता है और उसके पालन करने हेतु प्रयासरत रह सकता है।
भौगोलिक व राजनीतिक दृष्टि से इस पुस्तक के केंद्र में भूटान व वहाँ के नागरिक हैं परंतु पुस्तक का भाव सार्वभौम है। मुझे विश्वास है कि हिन्दी भाषा में इसका रूपांतरण, पाठकों को अपने देश के प्रति प्रतिबद्धता के भाव को जागृत करने और बनाए रखने में सफल होगा। यह अनुवाद भारत-भूटान मैत्री को समर्पित है और मेरा यह दृढ़ विश्वास है कि यह अनुवाद इस मैत्री को और अधिक प्रगाढ़ बनाएगा। इस पुस्तक के माध्यम से हिन्दी भाषी पाठकों को भूटान व वहाँ के संविधान, वहाँ की नागरिकी व इस संदर्भ में वहाँ किए जा रहे प्रयोगों के बारे में जानकारी होगी।
इस पुस्तक के अनुवाद में हुई किसी भी त्रुटि के लिए व्यक्तिगत रूप से मैं क्षमा चाहता हूँ। पाठकों से निवेदन है कि बेझिझक उनको मुझ तक प्रेषित करें जिससे भविष्य में उन्हें सुधारा जा सके।
एक बार फिर मैं श्री पौडयेल जी का धन्यवाद करना चाहूँगा कि उन्होंने मुझमें अपना विश्वास दिखाया, यह उनके बड़प्पन को दर्शाता है, उनका हृदय विशाल है, उनका व्यक्तित्व विराट है। मेरी यही कामना है कि भारत-भूटान मित्रता इसी प्रकार बनी रहे और हम दोनों राष्ट्र सदैव एक भरोसेमंद पड़ोसी की भूमिका निभाते रहें।
8 thoughts on “भूटान, ग्येल-खाब और मैं”
बहुत खूब।यह जानकर मुझे अत्यधिक हर्ष हो रहा है की आप एक महान कार्य का हिस्सा है । आपकी हिंदी और अंग्रेजी दोनों ही भाषाओं पर बहुत अच्छी पकड़ है।आपने बहुत ही सरल और सुंदर शब्दों में अपने भाव अभिव्यक्त किए है।
Hi Sir, just wanted to express my appreciation for your outstanding work on the book. Your dedication and expertise truly shine through. Thank you for inspiring us with your knowledge and passion.
A wonderful and worthwhile effort. You are to be congratulated for disseminating such progressive ideas to a larger world as Dr. Podyel is to be congratulated for articulating them.
Congratulations Prof Shrotryia for your excellent introduction to the book authored by Shri T.S. Podyal translated by you. I never knew you could write in Hindi also so well. I too have fond memories of my stay at Sherubse College, Bhutan in early nineties and meeting Shri Podyal and you. Then you were a young enthusiastic teacher.
You have very well explained the nature and personality of Shri Podyal. I myself was highly impressed by his simplicity, sincerity, and humility, a rare personality.
My regards and best wishes both for you and the author .
Hello Sir, your work is highly commendable, as it is reflective of your expertise and command over both the languages and understanding of both the nations. Transliteration is a step ahead of original writing and requires a wider vision of the original writer. Kudos!!! Abhinandan sir.
Congratulations heartiest dear Shrotiya for this work. The book is going to be of great value and importance to Hindi readers across the globe interested in Bhutan . The translation of this seminal work of Dr. Podyel, an eminent scholar and academic in Hindi is a laudable effort. Congratulations to both of you .
श्रोत्रिय जी की भूमिका एक लेख है। उनके उदगार जीवन के सार्थक पक्ष की कहानी है। कोई भी पढ़ने वाला प्रभावित हुये बिना नहीं रह सकता। उनके सरल व्यक्तित्व के निर्माण का आधार कदाचित उनके भूटान मे बिताए नो वर्ष है । वे शोभाग्यशाली थे ।
पोड्याल जी की पुस्तक की एक झलक उनकी भूमिका मे मिलती है ।
मे दोनों विद्वानो को साधुवाद देता हूँ ।
मेने भी कुछ वर्ष पूर्व एक यात्री के रूप मे भूटान का भ्रमण किया है । यह देव प्रदेश है।
Awesome Dear Vijay Sir…
Great to read about the backdrops which has culminated…added to the book…
Indeed a privelege to know you
Heartiest congratulations…
Deg Teg Fateh