अच्छा है

अच्छा है

कई वर्ष पूर्व मेरे एक सहकर्मी प्रवक्ता ने मुझसे कहा – “यार तुम कैसे हो, हर बात पर, हर चीज़ के संदर्भ में, कह देते हो, अच्छा है। मेरी कुछ समझ में नहीं आता, हर बात, हर व्यक्ति, हर सोच, हर चीज़ अच्छी कैसे हो सकती है।”

मैंने मुस्कराते हुए उनसे कहा – ‘तुम्हारा विचार भी सही है, अच्छा है।‘

वे थोड़ा खीज गए, मेरी मुस्कराहट बरकरार रही। फिर मैंने उनसे एक विस्तृत चर्चा की, मैंने कहा – हम सब भिन्न हैं, हमारी सोच भिन्न है, हमारा जीने का तरीक़ा भिन्न है, हमारी प्राथमिकताएँ भिन्न हैं। यों तो हम सभी शिक्षक हैं परंतु हमारे पढ़ाने के तरीक़े अलग-अलग हैं और हम सब अपनी जगह ठीक हैं, हम सब अपने आशय के अनुसार, अपने द्वारा निश्चित किए गए पथ के अनुसार, अपनी दिशा का निर्धारण करते हैं। और इसी प्रक्रिया से हमारी सोच में नवाचार का प्रवेश होता है, हमारी रचनाधर्मिता को पंख लगते हैं, हम विचार शून्यता से परे नए विचारों को जन्म देते हैं। कोई जान-बूझकर ग़लत नहीं होता, इसलिए यदि हम यह सोचें कि सब अपनी जगह ठीक हैं तो हम अपनी ऊर्जा को सकारात्मक कार्यों में लगा सकते हैं।

मुझे पता नहीं उनको मेरे विचारों से कुछ संतुष्टि हुई कि नहीं परंतु उनके प्रश्न ने मुझे अपने विचारों को अभिव्यक्त करने का अवसर अवश्य प्रदान किया। साथ-साथ अपनी इस सोच पर और गहनता से विचार करने को विवश भी किया। उसके पक्ष-विपक्ष पर नज़र डालने को भी प्रेरित किया।

यों तो देखने का नज़रिया होता है और यदि हम अपने मस्तिष्क के दाहीं ओर का अधिक प्रयोग करते हैं तो हमारी कल्पना शक्ति हमारे निर्णयों को प्रभावित करती है वहीं दूसरी ओर जब हम बाहीं ओर का अधिक प्रयोग करते हैं तो हमारे निर्णय तार्किक होते हैं। इस सबसे परे यदि हमको दूसरे व्यक्ति के आशय पर भरोसा होता है तो हम मस्तिष्क का नहीं वरन् हृदय का प्रयोग करते हैं और कहते हैं “अच्छा है”। यक़ीन मानिए यह सोच आपको कई समस्याओं से बचाती है, आपके समय को बर्बाद होने से बचाती है, आपके आसपास सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है।

कई बार हम भावना में बहकर क्रोधित हो जाते हैं, संभवतः अपनेपन के कारण अथवा ममता की वजह से। प्रायः यह क्षणिक होता है और समय के साथ अनुभूति होती है शायद मैं ग़लत था/थी। सामान्यतः यदि हम स्वयं को इस प्रकार ढालें कि कुछ भी मूल रूप से ग़लत नहीं होता, तो हम सहज होते जाते हैं और अपनी प्रतिक्रिया को “अच्छा है” के रूप में देखने लगते हैं। ऐसी सोच हमको व्यवहारिक कष्टों से दूर रखती है और दूसरे व्यक्ति को काफ़ी तसल्ली देती है।

इसके अपवाद भी हो सकते हैं, शायद मुझे उनका वर्णन करने की कोई आवश्यकता नहीं है। ऐसा कहना कि अच्छा है, व्यक्तिं की मनोदृष्टि को दर्शाता है, कोई जान भूझकर ग़लत नहीं होता, ग़लत नहीं बोलता, तो फिर हम क्यूँ नहीं कहते – अच्छा है, हम ऐसा बोलने में हिचकिचाते क्यों हैं, क्यों सोच में पड़ जाते हैं। हम सहज होकर, मुस्कराकर कह सकते हैं – अच्छा है।

19 thoughts on “अच्छा है”

  1. दूसरों के विचारों और विश्वासों का सम्मान करना श्रेष्ठ व्यक्ति का गुण है और आपसे बातचीत करते हुए मैं हमेशा आप में यही पाता हूँ प्रोफेसर श्रोत्रिय जी

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  2. This is true.
    But only persons with positive thinking will have this approach. Such people will also be happy under all, even difficult situations.

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  3. The article is again a special piece of work from you sir. We need to inculcate such thinking and then circulate. the positiveness needs to be propagated to the people around us.
    sir keep writing. you have a great intent for it with such common topics but with special feelings

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  4. Positive thinking sir. Learned Optimism as Martin Seligman also mentioned. This “acha hai”… Propagates we can be positive at all times. Thank you for sharing it.

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