आप जब किसी वाहन के पीछे चल रहे होते हैं तो कोशिश रहती है कि उसको ओवरटेक करके आगे बढ़ जाया जाये विशेष रूप से तब जब आगे चलने वाला वाहन धीरे चल रहा हो। हम अपने वाहन की गति तेज़ करते हैं और आगे चलने वाले वाहन को ओवरटेक करते हुए पीछे छोड़ देते हैं। यदि हम ओवरटेकिंग नहीं करते हैं तो आगे चलने वाले वाहन के चालक के हाथ हमारी गति निर्धारित करने का यंत्र चला जाता है और फिर हमारा सारा सफ़र हमसे आगे चलने वाला वाहन व उसका चालक ही निर्धारित करते हैं।
आगे आने वाले मोड़, चौराहा व गली पर हमारी क्या गति होगी व क्या एक्शन होगा, आगे चलने वाला वाहन ही तय करता है। अक्सर उस वाहन के पीछे चलते-चलते हम अपनी दिशा भी भूल जाते है और उस वाहन की दिशा हमारी दिशा हो जाती है और अचानक हमको लगता है, हम कहाँ आ गए हैं, कहाँ पहुँच गए हैं, हमको यहाँ तो आना ही नहीं था, अरे कितनी देर हो गई चलते-चलते। इस प्रकार के प्रश्न परेशान करते है क्योंकि हमारी दिशा, हमारी गति, हमारे स्वयं के द्वारा निर्धारित नहीं की गयी होती है। प्रश्न यह है कि इसके लिए कौन जिम्मेदार है। हम स्वयं, या हमारे आगे चलने वाला वाहन अथवा उसका चालक।
ऐसा भी होता है कि आगे चलने वाला वाहन व उसका चालक आपको ओवरटेक करने के लिए जगह ही न दे। आप डिपर का प्रयोग करते रहिये, हॉर्न बजाते रहिये, उसकी कान पर जूं नहीं रेंगती। कई बार वह अपने आगे होने की स्थिति का लाभ उठाता है, उसे पता है उसके बिना रास्ता दिए आप उसे ओवरटेक नहीं कर सकते। कई बार वह अपने वाहन को इस प्रकार चलाता है, कि आप किसी भी प्रकार से उससे आगे न निकल जाएँ। आपके रास्ते में रोड़े उत्पन्न किये जाते हैं, और आप मात्र एक मूकदर्शक बने स्वयं व परिस्थितियों को कोसते रहते हैं। इसीलिए रास्ते का चुनाव करना एक महत्वपूर्ण निर्णय होता है।
अपने गन्तव्य पर पहुँचने के लिये दिशा का निर्धारण भी हमें स्वयं ही करना चाहिए और प्रयास यह होना चाहिए कि सफ़र के प्रारम्भ होने से पहले हम यह भी अनुमान लगा लें कि कितने समय में मैं उस स्थान पर पहुँच जाऊँगा। आजकल यंत्रों व तकनीक के माध्यम से यह बहुत आसान हो गया है। यदि रास्ते में किसी वाहन के कारण बाधा उत्पन्न हो रही हो तो उसको ओवरटेक कर दिया जाये। यही नहीं यदि हमारी गति से कम गति से चलने वाला वाहन आगे हो तो नियमानुसार उसको ओवरटेक करने में हमें कोई विलम्ब नहीं करना चाहिए। हम अपने गन्तव्य पर जल्दी पहुँच सकते हैं।
प्रतिस्पर्धा के इस युग में हर कोई एक दूसरे को ओवरटेक करने में लगा है और यदि सभी नियमों का पालन करते हुए ऐसा कर रहे हैं तो आखिर इसमें गलत क्या है। इस बात पर ध्यान देना अवश्य आवश्यक होगा कि कहीं इस ओवरटेकिंग में कोई दुर्घटना न हो जाये, किसी को कोई क्षति न हो, किसी वाहन पर कोई खरोच न आ जाये, जल्दी में कहीं लालबत्ती को भूल न जाएँ। इन सभी बिंदुओं पर ध्यान देते हुए यदि हम आगे बढ़ें तो बेहतर होगा। हम गतिसीमा में रहते हुए अपने गन्तव्यों की ओर अग्रसर रहें और अपनी दिशा का निर्धारण स्वयं करें तो गन्तव्य पर पहुंचकर एक संतुष्टि की अनुभूति अवश्य होगी। आखिर हम अपना रिमोट किसी और को क्यों दें। किसी और व्यक्ति को, किसी परिस्थिति को, किसी घटना को, या किसी वस्तु विशेष को।
अपने जीवन में भी हमें इससे सीख लेनी चाहिए। जीवन का मन्त्र चलना है और रास्ते का आनंद लेना है, रास्ते में मिले राहियों को याद रखना, उनके साथ वितायें क्षणों को अपनी स्म्रति में संजोना, उनसे मिली पॉजिटिव ऊर्जा को अपने सपनो को साकार करने में लगाना, चलना, चलते रहना, अपनी मंज़िल की ओर अग्रसर रहना, नए नए सपने देखना, धीमी गति से चल रहे लोगो को अपनी गति तीब्र करने हेतु प्रेरित करना, या फिर उनको ओवरटेक कर आगे बढ़ना, चलते रहना, रास्तों में, विचारों में, वाहनों में, सपनो में, हमेशा यहाँ तक कि विश्राम करने में भी चलने का ध्यान रखना नहीं तो हम सब को अंतिम विश्राम तो लेना ही है।
3 thoughts on “ओवरटेकिंग”
अत्यंत ही सारगर्भित परिपेक्ष। ऐसा जो हम सब रोज देखते हैं और महसूस करते हैं…
कुछ अँश पढे। आपकी हिन्दी पर पकड़ काफी प्रभावशाली है।
Sir…
It’s indeed a treat to follow your works as always…
Keep up the gd work..
Deg Teg Fateh