रिश्ते 31

Embed from Getty Images

रिश्तों से

कभी-कभी उठ जाता है

विश्वास

और अनायास ही

रिश्ते विलुप्त होते जाते हैं.

इतिहास का हिस्सा

बनने से भी कई बार

ऐसे रिश्ते वंचित रहते हैं.

रिश्ते पराजित होते हैं

नियति के अनुसार.

नियति का मोहरा बन

सब कुछ झेलते हैं

रिश्ते.

कालचक्र में फँसे रिश्ते,

परत दर परत

सब कुछ संजो कर रखते हैं

और कई बार

अपनी व्यथा बिना सुनाए ही

ब्रह्म में विलीन हो जाते हैं.

 

कई बार अपने अतीत में

मुग्ध होकर मुस्कराते भी हैं

और दुःखी भी होते हैं.

कोई उनकी व्यथा

सुनने वाला भी नहीं मिलता है

कई बार.

 

चलते तो ऐसे रिश्ते भी हैं

अपनी गति से.

===

और इनको भी पढ़ें –

2 thoughts on “रिश्ते 31”

Leave a Comment

Translate »